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एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था

 एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था। एक दिन उसे अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। उसने तत्काल अपने लेखा अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, पता तो चले मेरे पास कुल कितनी सम्पदा है।  सप्ताह भर बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ की सेवा में उपस्थित हुआ। सेठ ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है?” लेखाधिकारी नें कहा – “सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी” l लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ चिंता में डूब गए, ‘तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?’ वे रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते। सेठानी से हालत देखी नहीं जा रही थी। उसने मन स्थिरता व शान्त्ति के किए साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित किया। सेठ को भी यह विचार पसंद आया। चलो अच्छा है, संत अवश्य कोई विद्या जानते होंगे जिससे मेरे दुख दूर हो जाये l  सेठ सीधा संत समागम में पहूँचा और एकांत में मिलकर

प्रभु किनको याद करते है

एक बार की बात है, वीणा बजाते हुए नारद मुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे। नारायण नारायण !! नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमानजी पहरा दे रहे है। हनुमानजी ने पूछा- नारद मुनि! कहाँ जा रहे हो ? नारदजी बोले- मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है ? हनुमानजी बोले- पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है, प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे हैं। नारदजी- अच्छा ? क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ? हनुमानजी बोले- मुझे पता नहीं मुनिवर आप खुद ही देख आना। नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है। नारद जी बोले- प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए। प्रभु बोले- नहीं नारद, मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता। नारद जी- अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है? ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो ? प्रभु बोले- तुम क्या करोगे देखकर, जाने दो। नारद जी बोले- नहीं प्रभु बताइये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते हैं ? प्रभु बोले- नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्

सम्राट आया बुद्ध को मिलने

एक सम्राट आया बुद्ध को मिलने। स्वभावतः सम्राट था तो उसने एक बहुमूल्य कोहिनूर जैसा हीरा अपने हाथ में ले लिया। चलते वक्त उसकी पत्नी ने कहा कि पत्थर ले जा रहे हो। पत्नी ज्यादा समझदार होगी। पत्नी ने कहाः पत्थर ले जा रहे हो। माना कि कितना ही मूल्यवान है; लेकिन बुद्ध के लिए इसका क्या मूल्य? जिसने सब साम्राज्य छोड़ दिया, उसके लिए पत्थर ले जा रहे हो। यह भेंट कुछ जंचती नहीं। अच्छा तो हो कि अपने महल के सरोवर में पहला कमल खिला है मौसम का, तुम वही ले जाओ। वह कम से कम जीवित तो है। और बुद्ध कमलवत हैं। उनके जीवन का फूल खिला है। उसमें कुछ प्रतीक भी है। इस पत्थर में क्या है? यह तो बिल्कुल बंद है, जड़ है। बात तो उसे जंची, तो उसने सोचा कि एक हाथ खाली भी है; पत्थर तो ले ही जाऊंगा, क्योंकि मुझे तो इसी में मूल्य है। तो, मैं तो वही चढ़ाऊंगा जिसमें मुझे मूल्य है। लेकिन तू कहती है, तेरी बात भी हो सकती है कि ठीक हो। और बुद्ध को मैं जानता भी नहीं कि किस तरह के आदमी हैं। तो फूल भी ले लिया। एक हाथ में कमल है, एक हाथ में हीरा, लेकर वह सम्राट बुद्ध के चरणों में गया। जैसे ही बुद्ध के पास पहुंचा और हीरे का हाथ उसने आगे ब

नास्तिक को मिले प्रभु

नास्तिक को मिले प्रभु 🌿🌿🌿 . एक छोटा सा गांव था।  . गांव में एक वृद्ध साधु थे, जो गांव से थोड़ी सी दूरी पर स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में कन्हैया की पूजा-अर्चना करते।  . और प्रतिदिन सायंकाल नियमपूर्वक अपनी झोपड़ी से निकलकर मंदिर जाते और भगवान के सम्मुख दीपक जलाते। . उसी गांव में एक नास्तिक व्यक्ति भी रहता था। उसने भी प्रतिदिन का नियम बना रखा था ‛दीपक बुझाने का’।  . जैसे ही साधु भगवान के सामने दीपक जला कर मंदिर से घर लौटते, वह नास्तिक मंदिर में जाकर दीपक को बुझा देता था।  . साधु ने कई बार उसे समझाने का प्रयत्न किया, पर वह कहता- “भगवान हैं, तो स्वयं ही आकर मुझे दीपक बुझाने से क्यों नहीं रोक देते?” . “बड़ा ही नास्तिक है तू...” कहते हुए साधु भी निकल जाते। . यह क्रम महीनों, वर्षों से चल रहा था।  . एक दिन की बात है, मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था। आंधी-तूफान के साथ मूसलाधार बारिश हो रही थी।  . बारिश कुछ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।  . साधु ने बहुत देर तक मौसम साफ होने की प्रतीक्षा की, और सोचा- ‛इतने तूफान में यदि मैं भीगते, परेशान हुए मंदिर गया भी और दीपक जला भी दिया, तो वह शैतान नास्तिक आकर बुझा

राजा भोज की सभा

एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा ने उसे देखा तो देखते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सबकुछ छीन लिया जाना चाहिए। व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा – मै प्रजा को हमेशा न्याय देता हूं। आज मेेरे मन में यह अन्याय पूर्ण भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन ली जाये? उसने अपने मंत्री से सवाल किया मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउंगा, राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था वह इधर-उधर के सोच-विचार में संयम न खोकर सीधा व्यापारी से मिलने पहुंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पूछा, “तुम इतने चिंतित और दुखी क्यों हो? तुम तो भारी मुनाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।” व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडियां भरे फिर रहा हूं, पर इस बार चन्दन की बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान से बच पाने का कोई उपाय नहीं है। व्यापारी की बातें सुन मंत्री ने पूछा, “क्या अब कोई भी रास्ता नही बचा है?” व्यापारी हंस कर कहने लगा अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाये तो उनके दाह-संस्कार के

संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु

----संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु ----------------- दोस्तों, क्या आपको पता है की इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है? और क्या वो आपके भी पास है? और अगर है तो क्या आप उसका प्रयोग करना जानते हैं? आइये इस कहानी के माध्यम से इन बातों को समझते हैं: 🌹एक दिन गुरुकुल के शिष्यों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि आखिर इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है ? कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ…जब पारस्परिक विवाद का कोई निर्णय ना निकला तो फिर सभी शिष्य गुरुजी के पास पहुँचे। सबसे पहले गुरूजी ने उन सभी शिष्यों की बातों को सुना और कुछ सोचने के बाद बोले- तुम सबों की बुद्धि ख़राब हो गयी है! क्या ये अनाप-शनाप निरर्थक प्रश्न कर रहे हो? इतना कहकर वे वहां से चले गए। हमेशा शांत स्वाभाव में रहने वाले गुरु जी से किसी ने इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। सभी शिष्य क्रोधित हो उठे और आपस में गुरु जी के इस व्यवहार की आलोचना करने लगे। अभी वे आलोचना कर ही रहे थे कि तभी गुरु जी उनके समक्ष पहुंचे और बोले- मुझे तुम सब पर गर्व है, तुम लोग अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करते और अवकाश के समय भी ज्ञान चर्चा किया करते हो। गुरु जी

मन की शंका

एक साधारण सा किसान था। पहाड़ियों पर कभी चढ़ा नहीं था, हालांकि पहाड़ियां उसके पास ही थीं, दूर नहीं थीं। पर्वत की हरियाली उसे बार-बार अपनी ओर खींचती। उसे पर्वत के ओर-छोर में लगे वृक्षों की सुन्दर पंक्तियाँ आकर्षित करती...लेकिन पर्वत के शिखर तक पहुंचने के लिए रात भर चाहिए, दिन में तो चढ़ा ही नहीं जा सकेगा, क्योंकि दिन में सूर्य की गर्मी, हताशा भर देती है, हिम्मत जवाब दे देती है। उसने पर्वत की चोटी पर चढ़ने के लिए, एक बार पहले भी कोशिश की थी रात को। लेकिन उसके पास रौशनी के लिए लैम्प नहीं थी, लेकिन इस बार उसने लैम्प का प्रबंध कर लिया था और लैम्प लेकर वह एक रात, पर्वत की चोटी तक चढ़ने के लिए घर से निकल पड़ा। लेकिन आत्मविश्वास की कमी ने उसे | फिर रोक लिया। जब उसने पर्वत शिखर पर नजर डाली तो उसे डर लगने लगा। भीतर से डोल गया। उसका मन कह उठा, कैसे चढ़पाओगे। इतनी ऊंची चोटी पर...इतनी दूर तक कैसे जा पाओगे...रात अंधेरी है, कहीं पैर फिसल गया तो..? इसी 'तो' ने उसे हिला दिया। हिम्मत जवाब दे गई। फिर भी उसके भीतर के एक कोने में फिर थोड़ी-सी शक्ति का संचार हुआ। उसने सोचा, इस बार तो मेरे पास यह लैम्