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Showing posts from September, 2020

सम्राट आया बुद्ध को मिलने

एक सम्राट आया बुद्ध को मिलने। स्वभावतः सम्राट था तो उसने एक बहुमूल्य कोहिनूर जैसा हीरा अपने हाथ में ले लिया। चलते वक्त उसकी पत्नी ने कहा कि पत्थर ले जा रहे हो। पत्नी ज्यादा समझदार होगी। पत्नी ने कहाः पत्थर ले जा रहे हो। माना कि कितना ही मूल्यवान है; लेकिन बुद्ध के लिए इसका क्या मूल्य? जिसने सब साम्राज्य छोड़ दिया, उसके लिए पत्थर ले जा रहे हो। यह भेंट कुछ जंचती नहीं। अच्छा तो हो कि अपने महल के सरोवर में पहला कमल खिला है मौसम का, तुम वही ले जाओ। वह कम से कम जीवित तो है। और बुद्ध कमलवत हैं। उनके जीवन का फूल खिला है। उसमें कुछ प्रतीक भी है। इस पत्थर में क्या है? यह तो बिल्कुल बंद है, जड़ है। बात तो उसे जंची, तो उसने सोचा कि एक हाथ खाली भी है; पत्थर तो ले ही जाऊंगा, क्योंकि मुझे तो इसी में मूल्य है। तो, मैं तो वही चढ़ाऊंगा जिसमें मुझे मूल्य है। लेकिन तू कहती है, तेरी बात भी हो सकती है कि ठीक हो। और बुद्ध को मैं जानता भी नहीं कि किस तरह के आदमी हैं। तो फूल भी ले लिया। एक हाथ में कमल है, एक हाथ में हीरा, लेकर वह सम्राट बुद्ध के चरणों में गया। जैसे ही बुद्ध के पास पहुंचा और हीरे का हाथ उसने आगे ब

नास्तिक को मिले प्रभु

नास्तिक को मिले प्रभु 🌿🌿🌿 . एक छोटा सा गांव था।  . गांव में एक वृद्ध साधु थे, जो गांव से थोड़ी सी दूरी पर स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में कन्हैया की पूजा-अर्चना करते।  . और प्रतिदिन सायंकाल नियमपूर्वक अपनी झोपड़ी से निकलकर मंदिर जाते और भगवान के सम्मुख दीपक जलाते। . उसी गांव में एक नास्तिक व्यक्ति भी रहता था। उसने भी प्रतिदिन का नियम बना रखा था ‛दीपक बुझाने का’।  . जैसे ही साधु भगवान के सामने दीपक जला कर मंदिर से घर लौटते, वह नास्तिक मंदिर में जाकर दीपक को बुझा देता था।  . साधु ने कई बार उसे समझाने का प्रयत्न किया, पर वह कहता- “भगवान हैं, तो स्वयं ही आकर मुझे दीपक बुझाने से क्यों नहीं रोक देते?” . “बड़ा ही नास्तिक है तू...” कहते हुए साधु भी निकल जाते। . यह क्रम महीनों, वर्षों से चल रहा था।  . एक दिन की बात है, मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था। आंधी-तूफान के साथ मूसलाधार बारिश हो रही थी।  . बारिश कुछ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।  . साधु ने बहुत देर तक मौसम साफ होने की प्रतीक्षा की, और सोचा- ‛इतने तूफान में यदि मैं भीगते, परेशान हुए मंदिर गया भी और दीपक जला भी दिया, तो वह शैतान नास्तिक आकर बुझा

राजा भोज की सभा

एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा ने उसे देखा तो देखते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सबकुछ छीन लिया जाना चाहिए। व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा – मै प्रजा को हमेशा न्याय देता हूं। आज मेेरे मन में यह अन्याय पूर्ण भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन ली जाये? उसने अपने मंत्री से सवाल किया मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउंगा, राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था वह इधर-उधर के सोच-विचार में संयम न खोकर सीधा व्यापारी से मिलने पहुंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पूछा, “तुम इतने चिंतित और दुखी क्यों हो? तुम तो भारी मुनाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।” व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडियां भरे फिर रहा हूं, पर इस बार चन्दन की बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान से बच पाने का कोई उपाय नहीं है। व्यापारी की बातें सुन मंत्री ने पूछा, “क्या अब कोई भी रास्ता नही बचा है?” व्यापारी हंस कर कहने लगा अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाये तो उनके दाह-संस्कार के